
व्हाट्सएप पर लाइव उत्तरांचल न्यूज के नियमित समाचार प्राप्त करने व हमसे संपर्क करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
https://chat.whatsapp.com/BhBYO0h8KgnKbhMhr80F5i
अल्मोड़ा। लाइव उत्तरांचल न्यूज
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठावनी एकदशी कहा जाता है। कुमाऊं में इसको बूढ़ी दिपावली के तौर पर मनाया जाता है। वहीं इस तिथि को तुलसी शालीग्राम विवाह का भी विशेष महत्व है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली यानि महालक्ष्मी की पूजा होती है। इसके बाद आने वाले शुक्लपक्ष की एकादशी को बूढ़ी दिपावली मनाने की परंपरा है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में इस तिथि को इगास के तौर पर मनाया जाता है। इसके साथ जुड़ी कथानक के अऩुसार भगवान राम के लंका विजय करने के बाद अयोध्या लौटने की सूचना पहाड़ी क्षेत्र में देर से मिली थी। तब से 11 दिन बाद पहाड़ के इस क्षेत्र में दीपवाली यानि इगास मनाई जाती है।
वहीं कुमाऊं में एकादशी यानि हरबोधनी एकादशी को अलग तरीके मनाने की परंपरा है। इस त्यौहार के लिए घर में सूपे पर विशेष ऐपण दिए जाते हैं। सूपे के अंदर के हिस्से में गेरू विश्वार से लक्ष्मी-नारायण की आकृति बनाई जाती है जबकि बाहर की तरफ भुइयां की आकृति बनायीं जाती है। लक्ष्मी नारायण को सुख समृद्धि तथा भुइयां को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है।
इस एकादशी के दिन सुबह चार बजे घर में महिलाएं पूजा स्थल पर दिया जला कर विशेष तौर पर बनाए गए सूपे में खीले, गन्ना अखरोट आदि रखकर घर के प्रत्येक कमरे में ले जाती हैं। इस दौरान सूपे को गन्ने के टुकड़े से ठक ठक करते आओ लक्ष्मी बेठो नरैणा निकल भुईयां करते हुई चलती हैं। और अंत में सूपे की इस सामग्री को बाहर बने ओखल में विसर्जित कर दिया जाता है। इस मौके पर ओखल में भी ऐपण दिए जाते हैं। इस प्रकार बूढ़ी दीपावली की यह परंपरा संपन्न होती है।
शालीग्राम विवाहः हरबोधिनी एकादशी को तुलसी का शीलीग्राम से विवाह का भी महत्व है। लोक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चार महीने तक शयन के बाद एकादशी के दिन जागते हैं। इस लिए इसको देवउठावनी भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु शालीग्राम रूप में तुलसी से विवाह करते हैं। साल में होने वाली एकादशियों में इसका अपना ही महत्व भी है। इसके बाद का समय मांगलिक कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।