नैनीताल। लाइव उत्तरांचल न्यूज /धर्म—कर्म डेस्क

आज गंगा दशहरा है। देश भर में इसे धूमधाम से मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का त्योहार काफी महत्व रखता है। आज ही के दिन मां गंगा के स्वर्ग से धरती पर जनकल्याण के लिए अवतरित हुई। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा पर मां गंगा की पूजा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है। इस पावन मौके पर पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाने में मनुष्यों को पाप से मुक्ति मिलती है। हालांकि कोविड नियमों व प्रशासनिक नियमों के तहत आज तीर्थ स्थलों पर बड़े आयोजन नहीं हो रहे हैं। लेकिन आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। विशेष तौर देवभूमि में इसे विधिवत धार्मिक अनुष्ठान के साथ घरों की दीवारों में कमल वृत्तीय रंगीन कागजों को मंगलकारी मंत्रों सहित लगाने की पंरपरा रही है। हमारे सुधी पाठक पंडित प्रकाश जोशी ने जानकारी युक्त हमें आलेख भेजा इसे हम आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैंं।
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ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस बार रविवार 20 जून यानि आज गंगा दशहरा मनाया जा रहा है। इस पर्व पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। गंगा स्नान न कर पाने की स्थिति में पास की नदियों या घर में ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करने की सलाह दी जाती है। वैसे तो यह पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है परंतु कुमाऊं में इसे गंगा दशहरा न कहकर दशहरा के रुप में कहते हैं। दरअसल इस दिन विशेष पूजन के बाद पुरोहितों द्वारा अभमंत्रित द्वार पत्र लगाने की पंरपरा रही है। एक सफेद कागज में विभिन्न रंगों का रंगीन चित्र बनाकर उसके चारों और बहू वृत्तीय कमल दलों का अंकन किया जाता है। जिसमें लाल पीले हरे रंग भरे जाते हैं इसके बाहर वज्र निवारक 5 ऋषि यों के नाम के साथ मंत्र लिखा जाता है। ब्राह्मणों द्वारा यजमान घर के दरवाजे पर इसे लगाते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को चावल और दक्षिणा देने की भी परंपरा रही है। दशहरा द्वार पत्र लगाने के पीछे प्राचीन समय से यह किंबदंती चली आ रही है की इससे मकान भवन पर वज्रपात बिजली आदि प्राकृतिक प्रकोपों का विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ता है। वैसे वर्षा काल में जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में वज्रपात की अनेक घटनाएं होती हैं। इस प्रकार के वज्र निवारक समेत वर्षाकाल में व्याधियों को रोकेने के लिए किये जाने की मान्यता रही है। वर्तमान में दशहरा पत्र तैयार करना बेहद आसान हो गया है लेकिन पूर्व में हाथ से बनाया जाता था। उसके बाद में इसे एक साफ-सुथरे पत्र पत्थर की सलेट में चित्र की उल्टी आकृति बनाकर मंत्र लिखकर मशीन में लगाया जाता था। फिर पत्थर के चित्र में मंत्र लिखकर मशीन में लगाया जाता था। इसके बाद पत्थर के खाली जगह पर पानी लगाया जाता था। इसके बाद चित्र पर काली स्याही लगाई जाती थी। इसके बाद पत्थर की सलेटी पर कागज रखा जाता था ऊपर भारी चीज से दबाया जाता था। तब जाकर यह पत्र तैयार होते थे। जिससे पत्थर में बने चित्र कागज में छप जाते थे सफेद कागज में चित्र छप कर उस में रंग भरे जाते थे। आप सभी को गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं ।
